________________
4.88
२१२३०३
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भावी ) सूत्र +8+
सणी णो असण्णी, अण्णाणी जाव विभंगणाणी जहा आहारओ ॥ ३५ ॥ सजोगी जाव कायजोगी जहा आहारओ जस्स जो जोगो अस्थि, अजोगी जहा पोसण्णी णो अलण्णी ॥ ३६ ॥ सगारोवउत्तो अणागारोवउत्तेय जहा अणाहारओ ॥ ३७ ॥ सवेदो जाव णपुंमगवेदओ जहा आहारओ · अवेदओ जहा अकसायी ॥ ३८ ॥ ससरीरी जाव कम्मगसरीरी जहा आहारओ णवरं जस्स जं अत्थि, असरीरी जहा णो भवसिद्धोय जो अभवसिद्धीय, ॥ ३९ ॥ पंचहिं पजत्तीहिं पंचहिं अपज्जत्तीहिं जहा
आहारओ सब्बत्थ एगत्तपुहत्तेणं दंडगा भाणियन्वा ॥ ४० ॥ इमा लक्खणं गाहा हबानी का नो संझी नो असन्जी जैसे कहना अज्ञानी यावत् विभंगशानी का आहारक जैसे कहना ॥ ३५॥ Eमयोगी यारत काया योगों का आहारक जैसे कहना. अयोगी का नोशी नो असंही जैसे कहना. ॥ ३६॥
क रोपयुक्त व अनाकारांपयुक्त का अनाहारक जैसे कहना ॥ ३७ ।। सवेदी यावत् नपुंसक बेदी आहारक जसे करना. अंदी का अपायो जैरे कहना. ॥ ३८॥ सशरीरी यावत् कार्माण शरीरी क आहारक जैसे कहना. परंतु जिन को जितने शरीर होवे उन को उतने शरीर कहना. अशरीरी का नो भवसिदिक नो अभवसिदिक जैसे कहना. ॥ ३१ ॥ पांच पर्याप्ति व पांच अपर्याप्ति से जैसा आहारक कहा
अठारहवाशनकका पहिला उद्देशा 4834
-