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सूत्र
भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्त ( भगवती ) सूत्र
सिय
पुहतेणं पढमो णो अपदमो ॥ २३ ॥ पंचहिं पज्जतीहिं पंचहिं अपजत्तीहिं एगन्त पुहत्तेणं जहा आहारए वरं जस्स जा अत्थि, जाव वेमणिया णो पढमा अपमा ॥ २४ ॥ इमा लक्खण गाहा जो जेण पत्तपुव्वो भावो सो तेण अपढमोहोई ॥ सेसेसु होइ पढमो अपतपुत्रेसु भावसु ॥ १ ॥ २५ ॥ जीवेणं भंते ! जीव भावेणं किं चरिमे ? अचरिमे ? गोयमा ! णो चरिमे अचरिमे ||२६|| णेरइएणं भंते ! णेरइयभावेणं पुच्छा ? गोघमा ! चरिमे सिय अचरिमे एवं जात्र आहारकशरीरी का एक अनेक आश्री समदृष्टि जैसे कहना. अशरीरी जीव मिद्ध में एक अनेक आश्री प्रथम है परंतु अप्रथम नहीं है || २३ || पांच पर्याप्ति तथा पांच अपर्याप्त से एक अनेक आश्री आहारक शरीर जैसे जिन को जितनी पर्यायों होने उस को उतनी कहना. यावत् वैमानिक में प्रथम है परंतु अप्रथम नहीं हैं ||२४|| अब यपर मथन अमयन के लक्षण वाली गाथा कहते हैं. जो जीवादि भाव जिस जीवत्वादि भाव से पूर्वभाव पर्याय को पाया वः जीवादि उस जीवलादिभाव से अप्रथम है और इस से अन्य प्रथम है ।। २५ ।। अ भगवन् ! जीव जीवभाव से क्या चरिम या अचरिम है ? अहो गौतम : जीव जीवभाव से चरिम नहीं है परंतु अचरिम है. क्योंकि जीव का अन्य स्वरूप नहीं होता है ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! नारकी नरकमात्र से क्या चरिम है या अचरिए है ? अहो गौतम ! नारकी स्यात् ।
4- अठारहवा शतक का पहिला उद्देशा
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