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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ १८ ॥ सजोगी मणजोगी जोगी कायजोगी एगतगुहत्तणं जहा आहारए, णवर जस्स जो जोगो अस्थि ॥ अजोगी जीव मणुस्सा सिद्धा एगन्तपुहतेणं पढमा णो अरढमा ॥ १९ ॥ सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता एगत्तपुहतेणं जहा अनाहारए ॥ २० ॥ सवेदगो जाव णपुंसगवेदगो एगत्तपुहत्तेणं जहा आहारए एवं जस्स जो वेदो अस्थि; अवेदओ एगत पुहत्तेणं तिसुवि पदेसु जहा अकसाई ॥ २२ ॥ ससरीरी जहा आहारए, एवं कम्मग सरीरी जस्स जं अत्थि सरीरं, नवरं आहारगतरीरी एगत्तपुहतेणं जहा सम्मद्दिट्ठी, असरीरी जीवो सिद्धों ए
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
एक अनेक आश्री आहारक जैसे कहना ॥ १८ ॥ सयोगी, मन योगी, वचन योगी व काया योगी का { एक व अनेक आश्री आहारक जैसे कहना. अयोगी जीव, मनुष्य व सिद्ध एक अनेक आश्री प्रथम है। परंतु अप्रथम नहीं है ॥ ११ ॥ साकारोपयुक्त व अनाकारापयुक्त का एक अनेक आश्री आहारक जैसे कहना | ||२०|| सवेदी यावत् नपुंसकवेदी का एक अनेक आश्री आहारक जैसे कहना. विशेषता यह कि जिन में { जो वेद होत्रे उन में वही वेद कहना. अवेदीका एक अनेक आश्री तीनों पद में अकषायी जैसे कहना ॥ २२ ॥ ६ सशरीरीका आहारक जैसे कहना ऐसे ही कार्माण शरीर तक जिन को जो शरीर होवे सो कहना. विशेष में
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