SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Im 4 মঙ্গ पंचमाङ्ग विवाह पण्णति (भगवती) मूत्र जाब माणिए || सिद्धेणं भंते ! सिद्ध भावेणं कि पढमें सपढमे? गोयमा ! पढेमे जो है। अफ्रमे ॥ २ ॥ जीवाणं भंते ! जीवभावेणं किं पढमा अढमा ? गोयमा ! णो पढमा अपढमा ॥ एवं जार माणियाणे । ३३ सिडाणं पच्छा? गोयमा ! २२९३ फ्डमा णो अपहमा ॥ ॥ आहारएणं भंते ! जीवे माहरक्षावे किं पहले अपढमे? गोयमा । यो पदमे अपढमे ॥ एवं जाव वेसरणिए ब हत्तिएवि एवं चय अण्णाहारएणं भंते ! जीवे अणाहारभावेणं पुच्छा ? मोय सिप पढछे सिथ अपडको चौबीस दंडक का जानना. ।। १ । अहरे भगवन् ! सिद्ध सिद्धशाव से क्या प्रथम है या अप्रथम है ? अहो गौतम ! सिद्ध सिद्धभाव से अप्रथा है परंतु प्रथय नहीं है. यह एक आश्री कहा अब अनेक पाश्री कहते हैं. अहो भगवन् ! बहुत जीव जीवभर से क्या प्रथम है या अप्रथम हैं ? अहो मौसा प्रथम नहीं हैं परंतु अप्रथा हैं, ऐसे ही वैमानिक पक्ष जानना. ॥ ३ ॥ सिद्ध प्रथम हैं परंतु अपथम नहीं हैं. ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! आहारक जीव अहारभाव से क्या प्रथम है या नथम है । अखे गौतम ! प्रथम नहीं है परंत अप्रथम है. ऐसे ही बैनिक पर्यत जानना.॥५॥स बीवों का भी वैसे ही मानना. ॥६॥ अहो भगवन्! अनाहारक और क्या अनाधार भार से प्रथम प्रथम है? अहो गौतम स्यात प्रथम वै स्यात् अप्रथम है अर्थात् किसनेक जीवों की अनाहारक होने की आदि है सिद्धयतू और अठारहवा शतक का पहिला उद्दशाitt: 8
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy