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भावार्थ
8 पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 44
वायुकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा, एवं चेत्र ॥ सेवं भंते भंतेत्ति | सत्तरसमस्स सोलसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ १६ ॥
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अग्गिकुमाराणं भंते ! सव्वेसमाहारा एवं चैव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति | सत्तरसमस्स सत्तरसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ १७ ॥ सम्मत्तं सत्तरसमं सयं ॥ १७ ॥
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वायु कुमार का भी वैसे ही कहना. अहो भगवन आपके वचन सत्य हैं यह सत्तरहवा शतक का सोलहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा || १७ ॥ १६ ॥
अहो भगवन् ! क्या अग्निकुमार सरिखे आहार करने वाले वगैरह पहिले जैसे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह सतरहवा शतक का सतरहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ १७ ॥ १७ ॥
49+ सत्तरहवा शतक का १६-१७ वा उद्देशा 982+*
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