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णागकुमाराणभंते! सत्वे समाहारा जहा सोलसमसए दीवकुमारुहेसए तहेवाणरवसेसं भाणियव्वं जाव इढी ॥सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ॥सत्तरसमस्स तेरसमो॥१७॥१३॥ सुवण्णकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा एवं चेव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमसस्स चउद्दसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ १४ ॥ विज्जुकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा, एवं चेव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमस पण्णरसमो उद्दसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ १५॥
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी:
.भकामकाजाबहादुर लाला मुखदेव महायनी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ
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अहो भगवन् क्या नाग कुमार देव सरिखे आहार करने वाले हैं ? अहो गौतम ! जैसे सोलहवे शतक में द्वीप कुमार का उद्देशा कहा वह सब यहां पर निरवशेष कहना यावत् ऋद्धि. अहो भगवन् ! आ वचन सत्य हैं यह सत्तरहवा शतक का तेरहवा उद्देश। संपूर्ण हुवा. ॥ १७ ॥१३॥ ___ अहो भगवन् ! क्या सुवर्णकुमार सरिखे आहार करने वाले हैं ? इन का भी अधिकार वैसे ही जानना. यह सतरहवा शतक का चौदहया उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १७॥ १४॥ . .
विद्युन कुमार का भी वैसे ही जानना. अहो भगवन आप के वचन सत्य हैं यह सतरहवा शतक पनरहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १७ ॥ १५॥ .
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