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सूत्र
भावार्थ
4- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4380+
समाउया समोववण्णगा || १ || एगिंदियाणं भंते ! कइलेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चउलेस्साओ पण्णत्ताओ, तंजहा कण्हलेस्सा जाब तेउलेस्सा । एएसिणं संते ! एगिंदियाणं कण्हलरसाणं जाव विसेसाहिया ? गोवमा ! सव्वत्थावा एगिंदियाणं तेउलेस्सा काउलेस्सा अनंतगुणा णीललेस्सा बिसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेमाहिया । एएसिणं भंते! एगंदियाणं कण्हलेस्सा इड्डी जहेब दीवकुमारा सेवं भंते भवेति ॥ सन्तरसमस्स दुवालसमो उद्देसो || १७ ॥ १२ ॥
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( शतक के दूसरे उद्देशे में पृथ्वीकाया की वक्तव्यता कही वैसे ही यहां जानना यावत् सरिखे आयुष्यवाले व (समान उत्पन्न होनेवाले ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय को लाओं कहीं ? अहो गौतम ! | एकेन्द्रिय को चार लेश्याओं कड़ी. जिसके नाम कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या. अहो भगवन् ! इन कृष्ण { यावत् तेजोलेश्यावाले में कोन किल से अलस बहुत यावत् है ? अहो गौतम ! सब से थोडे तेजो लेश्यावाले एकेन्द्रिय, इस से नीललेावाले अनंतसुते, इस से कापोत लेश्यावाले विशेपाधिक इस से कृष्ण लेश्यावाले विशेषाधिक. अहो भगवन् ! कृष्णलेशी एकेन्द्रिय की ऋद्धि वगैरह ? अहो गौतम ! जेले द्वीप { कुमार की कही वैसे ही जानना. यह सतरहवा शतक का बारहवा उद्देशा संपूर्ण हुआ. ॥ १८ ॥ १२ ॥ x
-सत्तरहवा शतक का बारहवा उद्देशा
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