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वाउकाइएणं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहएत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए। पुढवीए घणवाए तणुवाए घणवाथ बलएसु तणुवायवल एसु बाउकाइयत्ताए उवव. जित्तए, सेणं भंते ! सेसं तंचेव एवं जहा सोहम्मकप्रमाउकाइओ सत्त सुवि पुढवीसु
उवाइओ एवं जाव ईसिप्पभारा वाउकाइओ अहे सत्तगाए जाय उवयाएयव्बो, सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमस एकारसमो उद्देसो सम्नत्तो ॥ १७ ॥ ११ ॥ एगिदियाणं भंते ! सो समाहारा समुस्सास जीसासा, एवं जहा पढमसए वितिय
उद्देसए पुढवीकाइयाणं वत्तवया भगिया सव्येवि एगिदियाणं इहं भाणियव्या जाव भावार्थ अहो भगवन् ! वायुकाय सौधर्म देवलोक में से मारणांतिक समझात कर के इस रत्नप्रभा पृथ्वी में
घनवात व तनवात में घनवात पलय व तनातवालय में उत्पन्न होने योग्य होवे शेष वैसे ही जानना. ऐसे ही सौधर्म देवलोक में से वायुकाय सातों पृथ्वी में उत्पन्न होघे वैये कहना ऐसे ही ईपत्तागभार पृथ्वी में से वायुकाय नीचे की सातवी पृथ्वी में उत्पन्न हो वहांतक कहना. अहो भगान् ! आप के वचन सत्य हैं।
यह सत्तरहवा शतक का अग्यारवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ १७ ॥११॥ . . 1. अहो भगान् ! क्या एकेन्द्रिय सघ सरिखे आहारवाले, सरिसे उश्वास नीश्वासवाले, वगैरह जैसे प्रथम
10अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
*-काशक राजावहदुर लाला मुखदवसहायनी ज्यालामसादजी*