SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ २०३ 43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जाता है जा. यावत् से वह पु. परुषवैर से पु० स्पर्शा से वह गो० गौतम का करते को क किया। सं. सांधते को सं० सांघा नि० खींचते को नि० खींचा नि० निकलते को नि० निकला व. कहना ० हां भं भगवन् क० करते को किया जा. यावत् नि० निकला जे जो मि० मृगको मा० हने से वह मि. मृगवैर से पु० स्पर्श जे. जो पु० पुरुष को मा हुने से वह पु० पुरुषवैर से पु० स्पर्श अं० १ जाव से पुरिसवेरेणं पुढे । सेणूणं गोयमा ! कज्जमाणे कडे, संधेजमाणे संधिए, निहै व्वत्तिज्जमाणे निव्वत्तिए, निसिरिजमाणे निसिट्रेत्ति वत्तव्यंसिया । हंता भगवं ! क जमाणे कडे जाव निसट्रेत्ति वत्तव्यंसिया । से तेणट्रेणं गोयमा ! जे मियंमारेइ से मियवरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवरेणं पुढे, अंतो छण्हं मासाणं मरइमृग को मारा उस को मृग का वैर हुआ. अहो भगवन् ! यह अर्थ किस तरहसे है ? अहो गौतम ! 'कजमाणे कडे ' करते हुवे को किया अर्थान धनुष्य वाण करने लगा मो किया, 'संधिजमाणे संधिए' धनुष्य बाण सांधनेलगा सो संधा, 'निव्यत्तिज माणे निव्यत्तिए' धनुष्य खींचने लगा सो खींचा व 'निसरिजमाणे : निसिढे ' धनुष्य में से बाण नीकलनेलगा सो नीकला ऐसा कहा जा सकता है. हां भगवन् ! करते को किया हुवा यावत् नीकलते को निकला हुवा कहा जा सकता है. इसी मे अहो गौतम ! जो मृग मारता है, वह मृग का वैर से स्पर्शाता है अर्थात् उस मृग मारनेवाले को मृग का वैर लगता है और पुरुष प्रकाशक-राजावहादुर लालासुखदेवमहायजी ज्यालाप्रसादजी* भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy