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________________ मुनि श्री अम लक ऋषिजी 8 आउकाइओ तहा अहे सत्तमा पुढवी आउकाइओ उववाएयव्वो जाव ईसिप्पभाराए सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ ८ ॥ आउकाइएणं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहएत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलएस आउकाइयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते ! सेसं तंचेव एवं जाव अहे सत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिप्पभारा आउकाइ. ओ जाव अहे सत्तमाए उबवातेयव्वो सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमसयरसय णवमो मातवी तमतमा पृथ्वी यावत् ईपत्मारभार पृथ्वी का जानना. अहो भगवन् ! आपके बचन सस हैं. यह सतरहवा शतक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ।। १७॥ ८॥ । अहो भगवन् ! सौधर्म देवलोक में अप्कायिक मरणांतिक ममुद्धात करके इस रत्न प्रभा पृथ्वी के घनोदधि के वलय में उत्पन्न होने योग्य हो तो वह वहां क्या उत्पन्न होकर आहार करे या आहार करके उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे पहिले कहा वैसे ही यहां जानना. यावत् सातवी तमतमा पृथ्वी का. जैसे सौधर्म देवलोक का कहा वैसे ही ईषत्माग्भार पृथ्वी का नीचे की सातवी पृथ्वी में उत्पन्न होने तक कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सस हैं. यह सतरहवा शतक का नववा * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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