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सूत्र
भावाथ
विवाह पथत्ति ( भगवती ) सूत्र
पुढचीकाइ
सव्यपुढचीसु उववाइओ, एवं जाव ईसिप्पभारा पुढवकाइओ सव्वढवी उबवायव्वो जाव अहे सत्तमाए ॥ सेयं भंते संतति ॥ सतरसमस्स सत्तमा उद्देसो सम्मत्तो ॥ १७ ॥ ७ ॥
आउकाइएणं भंते ! इमी से स्थणप्पभाए पुढबीए समोहएं समोहइत्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए एवं जहा पुंढवीकाइओ तहा आउकाइओवि सव्वकप्पेसु जाव ईसिप्पभाराए तहेव उबवायचो एवं जहा रयणप्पभा
पृथ्वी काया का उत्पन्न होना कहना. ऐसे ही जैसे सौधर्म पृथ्वीकायिक सर्व पृथ्वी में उत्पन्न होने का [ कहा वैसे ही यावत् ईषत्प्राग्भार पृथ्वीकायिक सर्व पृथ्वी में जानना यावत् सातवी तम्तमा पृथ्वी. अो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह सतरहवा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १७ ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! इन रत्नप्रभा पृथ्वीकाय में अष्काय मारणांतिक समुद्रात करके सौधर्म देवलोक में ( उत्पन्न होने योग्य होवे वह क्या पहिले उत्पन्न होकर पीछे आहार करे अथवा पहिले आहार कर पीछे उत्पन्न होवे ? अढो गौतम ! जैसे पृथ्वीकाया का कहा वैसे ही अपकाया का सब देवलोक यावत् } ईपत्यागभार पृथ्वी तक कहना. और जैसे रत्नप्रभा की अपकाया कही वैसे ही शर्कर प्रभा यावत्
सत्तरहवा शतक का आठवा उद्देशा 80808
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