________________
:
CG
:
पणति ( भगवती ) सूत्र १०%80
ईसाणवडिंसएमहाविमाणे अद्वतैरसोअणसयसहस्साआयाम विक्खंभेणं उणयालीसं. च सयसहस्साए. वावन्नं सहस्साए अट्ठयअट्ठयाले जोयणसए परिक्खेवेणं एवं जहा दसमसए सक्काविमाणवत्तव्यया सा इहवि ईसाणसवि वत्तव्वया णिरवसेसा भाणियव्वा जाव आयरक्खत्ति, ठिई साइरेगाइं दो सागरोवमाइं, सेसं तंचेव जाब ईसाणे देविंद देवराया ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तरसमस्स पंचमो उद्देसो सम्मत्तो॥१७॥५॥ पुढवीकाइयाणं भंते ! इमासे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए समोहित्ता जे भविए
सत्तरहवा शतक की छठा उद्देशा
भावाथे
अहो गौरम ! इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की उत्तर दिशि में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत सम भूमि भाग वो है जैसे स्थानपद में कहा वैसा यावत् मध्य में ईशानावतंसक है. वह साढे बारह लाख -योजन क लम्या व चौडा है, उसकी एक क्रोड गुचाालस लाव बावन हजार आठ से अडतालीस योजन की
राधे हे. . वगेरह जला दशरे शतक में कहा वे ही यहां जाना. यावत् आत्मरक्षक देव. स्थिति दो सगरम की . यापत् ईशान देवेन्द्र समा, अहो भगवन् ! आप वचन सब हैं. यह सतरहवा शनक पवित्रा उद्देशा पूर्ण वा ॥ १७ ॥ ५ ॥ पावे उदेशे में ईशान ६वेन्द्र का कथन किया. छठे उद्देश में पृथ्वी काम का देवलोक में उत्पन्न
!
35
10