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सूत्र
भावार्थ
+3 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 42
सोहम्मे कप्पे पुढकाइयत्ताए उववजित्ताए से भंते! किं पुत्रि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा, पुबिंवा संपाउणेत्ता पच्छा उववज्जेजा ? गोयमा ! पुव्विवा उववज्जिन्ता पच्छा संपाउणेज्जा पुत्र वा संपाउणेत्ता पच्छा उववज्जेजा ॥ से केणट्टेणं जाब ! पच्छा उववजेजा ? गोयमा ! पुढवीकाइयाणं तओ समुग्धाया पण्णत्ता तंजहा वैयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणांतिय समुग्याए, मारणांतिय समुग्धाएणं समोहणमाणे देसेणंवा समोहणइ सव्वेणवा समोहणइ, देसेण समोहणमाणे पुवि संपाउ
होने का कहते हैं. अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में से पृथ्वी काया मारणांतिक समुद्घात कर के सौधर्म देवलोक में पृथ्वी कायापने उत्पन्न होवे तो क्या वह वहां उत्पन्न होकर पीछे आहार ग्रहण करे अथवा पहिले आहार ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! पहिले ( उत्पन्न होकर पीछे आहार ग्रहण करे अथवा पहिले आहार ग्रहण कर पीछे उत्पन्न होवे अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् पीछे उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! पृथ्वी काया को तीन समुद्धात कही हैं. वेदना समुद्रात, कषायसमुद्धात मारणान्तिक समुद्धात मारणांतिक समुद्धात करते देशले समुद्धात करे सर्व से समुद्धात करे. देश से समुद्धात करते पहिले आहार लेकर पीछे
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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