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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 488
यणा ॥ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चई जेरइयदव्वेयणा ? णेरड्य दव्वेयणा गोयमा! जंणं णेरइया गेग्इयदव्वे वर्टिसुवा वस॒तिवा वहिस्संतिवा तेणं तत्थ णेरइया णेरइय दव्वे वट्टमाणा गैरइयदव्वेयणं एयंसुवा एयंतिवा एयस्संतिवा, से तेणट्रेणं जाव दवे... यणा ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ तिरिक्खजाणिय एवंचेव, तिरिक्खजोणिय दव्वेयणं भाणियध्वं, सेसं तंचेव ॥ एवं जाव देवदव्वेयणा ॥ ३ ॥ खेत्तेयणाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउविहा पण्णत्ता, तंजहा णेरइय खेत्तयणा
जाव देवखेत्तेयणा से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ रइय खेत्तयणा णे० २ ? एवंचेव कंपना २ तिर्यंच द्रव्य कंपना ३ मनुष्य द्रव्य कंपना और और ४ देव द्रव्य कंपना. अहो भगवन् ! नारकी की द्रव्य कंपना क्यों कही ? अहो गौतम ! जो नारकी नरकपना में रहे. रहते हैं व रहेगें उन नारकीयोंने वहां ही नरक द्रव्य में रहते हुवे नारकी द्रव्य कंपना की, करते हैं व करेंगे। इससे यावत् नारकी न्य कंपना कही. ऐसे ही तिर्यंच द्रव्य कंपना, मनुष्य द्रव्य कंपना यावत् देव द्रव्य कंपना का जानना.॥३॥ अहो भगवन् ! क्षेत्र कंपना के कितने भेद कहे हैं. ? अहो गौतम ! क्षेत्र कंपना के चार भेद कहे हैं. नारकी क्षेत्र कंपना यावत् देव क्षेत्र कंपना. अहो भगवन् ! नारकी की क्षेत्र कंपना किसे कहते हैं ? अहो।
8. सरत्तहवा शतक का तीसरा उद्देशा dra
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