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शब्दार्थ
Himwanawrammar
अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
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कितनी कि० क्रिया गो० गौतम सि० कदाचित् तिः तीन क्रिया सि. कदाचित् च. चारक्रिया सि.. कदाचित् पं० पांचक्रिया जे० जो भ० योग्य नि निकालनेसे ति तीन जे० जो भ. योग्य नि. निकाल नेसे वि० विध्वंस करने से नो० नहीं मा० मारने से च. चार जे. जो भ० योग्य नि० निकालने से वि० विध्वंस करने से मा० मारने से से० उम पु० पुरुष को जा. यावत् पं० पांचक्रिया ॥६॥ पु० पुरुष भं० भगवन् क० कच्छ जा० यावत अ० किसी एक मि० मृग का ५० वयकेलिये आota है जे भविए निसिरणयाए तिहिं, जेभविए निसिरणयाएबि, विद्धंसणयाएवि, जोमारणयाए
चउहिं, जे भविए निसिरणयाएवि. विद्धंसणयाएवि, मारणयाएवि, तावंचणं सेपुरिसे जाव पंचकिरियाहिं पुढे । से तेणटेणं गोयमा ! सियतिकिरिए, सिय चउकिरिए,
सियपंच किरिए ॥ ६ ॥ पुरिसेणं भंते ! कच्छंसिबा जाव अन्नयरस्समियस्स वहाए कही? अहो गौतम ! क्वचित तीन क्रिया. क्वचित् चार क्रिया व क्वचित् पांच क्रिया कही हैं.
अहो भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा ? अहो गौतम ! जो बाण छोडता है उस को कायिकादि तीन ईक्रिया. जहांलग जो वाण छोडकर उस मृग को दुःखी करता है वहांलग उस को चार क्रिया और जो पुरुष बाण छोडता है, मृग को दुःखी करता है, और मार डालता है वहांलग उस. पुरुष को पांच क्रियाओं लगती हैं इसलिये अहो गौतम ! उक्त पुरुष को क्वचित् तीन चार व पांच क्रिया ओं लगती हैं ॥६॥
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदव सहायजी चालाप्रसादजी*
भावार्थ