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शब्दार्थ पु. पुरुप को का० कायिकी जा० यावत् पं० पांच कि० क्रिया पु० स्पर्शी से० वह ते इसलिये गो०
गौतम ॥ ५ ॥ पु० पुरुष क. कच्छ जा० यावत् २० वन वि० विषम मि. मृगवृत्ति वाला मि० मृगसंकल्प वाला मि० मृग मारने का अध्यवसाय वाला मि. मृगवध केलिये गं० गया हुवा मि० मृग ति० ऐसे का० करके अ० किसी एक मि• मृग का व० वधकेलिये उ० वाण नि० निकाले त तब भं० भगवन् क००
उस्सवणयाएवि, निसिरणयाएवि, दहणयाएविं, तावंचणं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे । से तेणटेणं गोयमा ! ॥ ५ ॥ पुरिसेणं कच्छंसिवा जाव वणविदुग्गंसिवा मियवित्तीए मियसंकप्पे. मिय पणिहाणे, मियवहाए गंताए, एमिएत्तिकाउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसु निसिरइ. ततोणं भंते ! सेपुरिसे कइकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए, सियचउकिरिए, सियपंचकिरिए । सेकेणटेणं ? गोयमा ! भावार्थ . इसलिये अहो गौतम ! ऐसा कहागया है कि उक्त पुरुष को क्वचित् तीन, चार, व पांच क्रियाओं ईoe
लगती हैं ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! कच्छ यावत् वनदुर्ग में मृगकी वृत्तिवाला, मृगवध का संकल्पवाला, मृग-१ ।
वध का चिन्तवन करनेवाला, यह मृग है ऐसा कहकर मृग मारने के लिये निकलाहुवा किसी पुरुषने । किसी एक मृग को मारने के लिये बाण छोडा. उस समय अहो भगवन् ! उस पुरुष को कितनी क्रियाओं
हिववपण्णात्ति ( भगवती). सूत्र
पहिला शतकका आठवां उद्देशाgadies