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________________ 43 ArrnamaAmar २२६७ पंचांग विषाह पग्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 48gs णागारणिले जाव अंतराइये वट्टमाणस जाव जीवाया । एवं कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए, सम्मट्ठिीए ३, एवं चक्खुदंसणे ४, आभिणिवोहियणाणे ५, मइ. अण्णाणे ३; आहारसणाए ४, एवं ओरालिय सरीरे ४, एवं मणजोए ३, सागारोवओगेरवटमाणस्स अण्णजीवे अण्णे जीवाया । सेकहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छंते एवमाहंसु,अहं पुण गोयमा एवमाइक्खामि जाव परूवेमि एवं खलु पाणाइवाए जाव मिच्छादसणाल वहमाणस्स सच्चेव जीवे सचेव जीवाया जीनों को जीव अन्य है व जीवात्मा बन्य है उत्थान बावत् पराक्रम में रहने वाले जीवों को जीव अन्य है व जीवात्मा अन्य, नारकी, तिर्थच मनुष्य देव में जीव अन्य व जीवात्मा अन्य, ज्ञानावरणीय । अंतराव में जीव अन्य व जीवात्मा अन्य, ऐसे ही कृष्म लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या, समदृष्टि, मिथ्याष्टिक ममपिध्यादृष्टि,चक्षुदर्शनादि चारदर्शन,मतिज्ञानादि पांच ज्ञान,मति अज्ञानादि नीन अज्ञान आहारसंज्ञादि चार संज्ञा उदारिक गरादि पांच शरीर,मायोगदि तीन मेग और साकागायुक्त व अनाकारोप युक्त में रहने वाले भारों को जीव अन्य है. व जीवात्मा अन्य है तो अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो कामौत्य ! अन्य वीथिकों का उपर्युक्त कथन मिथ्या है. उमे मैं इस तरह कहता हूं यावत् प्ररुपता हूं कि सचरहवा शतक का दूसरा उद्देशा +8 .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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