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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा गैरइया ॥ ५॥ अण्ण उत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेति एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादंसंणतल्ले बमाणस अण्ण जीवे अण्ण जीवाया ॥ पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अण्णे जीवे अण्णे जीवाया । उप्पत्तियाए जाव पारणामियाए वढमाणस्स अण्णे जीवे अण्णे जीवाया ॥ उग्गहे ईहा अवाए वट्टमाणस जाव जीवाया ॥ उट्टाणे जाव परक्कमे वट्ट
माणस्स जाव जीवाया ॥ णेरइयत्ते तिरिक्खमाणुस्सदेवत्ते वट्टमाणस्स जाव जीवाया तिर्यंच पंचेन्द्रिय बाल व बाल पंडित हैं परंतु पंडित नहीं हैं. मनुष्य का समुच्चय जीव जैसे कहना. बाणध्यं तर. ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसे कहना ॥५॥ अहो भगवन् ! अन्य तीथिक ऐसा कहते हैं। यावत् मरूपते हैं कि प्राणातिपात, मृपावाद यावन् मिथ्यादर्शन शल्प में रहने वाले जीवों को जोव अन्य हे व जीवात्मा अन्य है, प्राणानिपात से निवर्ना यावत् परिग्रा में निवर्तना, क्रोध का त्याग यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का त्याग में रहने वाले जीवों को जीव अन्य हैं व जीवत्मा अन्य है. उत्पातिया यावत पारिणामिया में रहने वाले जीवों को जीव अन्य है व जीवात्मा अन्य है,अवग्रह ईहा व अपाय में रहने वाले
* काशक रानाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
শাখ आ
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