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पंचांग विवाह पनधि (भगवती) पत्र
साए पच्चोवयमाणस्त उग्गहे वर्टति तेविणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं पुट्ठा ॥ ९ ॥ पुरिसेणं भंते ! रुक्खस्स कंदं पच्चा• ? गोयमा ! जावं चणं से पुरिसे जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे जेसिंपियणं जीवाणं सरीरेहितो मूले णिन्वत्तिए जाव बीए णिवत्तिए ते विणं जीवा पंचहि किरियाहि पट्टा ॥१॥ अहणं भंते ! से कंद जावं चणं से कंदे अप्पणो जाव चउहिं पुढे, जेसिंपियणं जीवार्ण सरीरेहिंतो मूले निबत्तिए संधे णिन्वत्तिए जाव चउहि पुट्रो, जेसिपियणं जीवाणं सरीरोहितो कंदे णिव्यक्तिए,
तेविणं जीवा जाव पंचहिं पुट्ठो ; जेविय से जीवा अहे बीससाए पञ्चोवय जाव से वे कायिकादि पांच क्रियाओं से स्पर्श हुये हैं ॥९॥ अहो भगवन् ! वृक्ष के कंद चलाते वक नीचे गिराते कितनी क्रियाओं लगे ? अहो मौनम ! जब लग वह पुरुष कंद चलाता है यावत् क्रियाओं. जिन जीवों के शरीर से मल यावत् बीज बना हुवा है उन जीवों को भी पांच क्रियाओं ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! वह कंद अपनी गुरुता से नीचे आवे तो कितनी क्रियाओं लगे ? वगैरह पूर्वोक्त जैसे यावत् चार क्रियाओं लगे. जिन जीवों के शरीर से कंद बना हुवा है उन जीवों को भी पांच क्रिय समती है. और स्वभाव से नीचे आते यावत् पाँच क्रियाओं लगे. जैसे कंद का कहा वैसे ही बीज का
48+ मंचरहवा शतक का पहिला उद्देशा 438
भाषार्थ