________________
सूत्र
भावार्थ
* अनुवादक बालमनि श्री अमोलक ऋषिजी
तलमारूभइत्ता तलाओ तलफलं पवालेइवा पवाडेड्वा तावचणं से पुरिसे काइयाए जाव पंचाहिँ किरिया पुट्ठे; जेलेिं पियणं जीवाणं सरीरेहिंतो तले णिव्यत्तिए तलफले णिव्यत्तिए
विणं जीवा काइयाए जाय पंचहि किरियाहिं पुढे ॥ ५ ॥ अहेणं भंते ! से तलफले अप्पणी सुरूयत्तए जाब पच्चीयमाणा, जाई तत्थ पाणाई जाय जीवियाओ रोइ, तरणं भंते ! से पुरिसे कतिक्किरिए ? गोयमा ! जावचणं से पुरिसे तलफले अप्पणी गुरूयत्ताए जाव जीवियाओ ववरांचेइ, तावचणं से पुरिसे काइयाए जाव किरियापटु ३ ॥ जंति पियण जीवाणं सरीर हिंतो तलेणिव्यत्तिए तेत्रिणं
फको (वरूप
क्रियाओं करे ? अ गौतम ! जब लगवह ताल और चह उस के फर चलाता है अथवा नींव डालता हैं वहां लग उस को कायिकादि पांचों क्रियाओं लगती है. और तिन जीवों के शरीर से ताल बना हुवा है उन जीवों का भी कायिकादि पांच क्रियाओं लगती हैं ॥ ५ ॥ अहो भगल ! वह ताल फल अपनी गुरुना से यावत् नीचे गिरे और माण की घात होगे अहो भगवन् ! उन पुरुष को कितनी क्रियाओं लगती है ! अहो गौतम! जहां लग वह पुरुष ताल * वृक्ष पर आरूढ होकर रहा है और उस का फल अपनी गुरुता से नीचे आकर गिरता और मार्ग में
प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
२२५६.