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श्री अमोलक ऋषिजी +
सेवं भंते मैतेति ॥ सोल पम्स अमो उद्देसो मन्तो ॥ १६ ॥ ८॥ ... कहिणं भंते! बलिस्स वह रोयाणं :स वइरो ग सो सभा मुहम्मा पत्ता ? गोयमा ! इहेव जंबुद्दीवे दीवे मंदास पव्ययास उत्तरणं तिरिय मसंखेजे जव चमरस्स जाव व यालीसं जोअणसहस्स इं उग्गहि ता एत्थणं बलिरस वइरोयणि इस्म वइरायणरण्णस्स रुयगिंदे णामं उप्रायपव्वए पत्ते. सत्तरस ए६.वीस जाणसए एवं परिमाणं अहेव तिगिच्छ
भावार्थ
13 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि
हैं. यह सोलहवा शतक की आठा उद्देशा मंपूर्ण हुग ॥ १६ ॥ ८ ॥ । आठवे उद्देश के अंत में समुच्चय देवता की वक्ताता है. नवे उद्देशे में उन के भेों का वर्णन करते हैं. अहो भगवा ! अमुरकुमार जाति के बाल नायक वैरोचन राजा की सघर्मा सभः कहाँ है ?? अहो गौतम ! इस जन्यूमीप में मेरु पर्वत की उत्ता में तीळ असंसार दंप मद्र उलंघ कर नावे वहां । जैसे दूपरे शतक के आठवे उदशे में चपा का कथां किया य र बलेन्द्र का जानना. यावत् बीयालीस हजार योजन जाव वहां पल नारक वैरोचन्द्र बरोचा रजाका रुपन्दोवान पनि आना है. वह ११७२१ योजन ऊंचा कहा है. जस चर का तिगिच्छ काका वर्णन किया बैन ही बलि का रुचकेन्द्र पर्वत का जानना. जो परिणाम तिगिच्छ कूट पर्वत का कहा वैसा यहां पर भी कहना. पासादावतंसक वैसे ही
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी मालाप्रमाइजी *