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________________ ॥ ८ ॥ देवेणे भंते ! महिदिए जाव महे सक्खे लोगते ठिच्चा पभू अलोगेसि हत्थवा जाव ऊरुवा आउंटाबेत्तएवा पसारेत्तएवा ? णो इणटे समटे ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ देवेणं महिदिए आव महसक्खे लोगंते ठिच्चा णो पभू अलोगंसि हत्थवा जाव पसारेत्तएवा ? गोयमा जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला वोधिचिया पोग्गला कडेवरचिया पोग्गला पोग्गला चेव पप्प जीवाणय अजीवाणय गइपरियए अहिजइ, अलोएणं णेवत्थि जीवा णेवत्थि पोग्गला से तेणटेणं जाव पसारेत्तएवा वहां लग उन को कायिकादि पांचों क्रियाओं लगती है ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! महर्दिक यावत् महा सुख वाला देव लोकान्त में रहकर अलोक में अपने हस्त, पांव यावत् जंघा संकुचित करने को व विस्तत करने को क्या समर्थ है ? अहो गौतम ! ऐसा करने में देव समर्थ नहीं होता है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि महर्दिक यावत् महा सुखवाला देव ऐसा करने में समर्थ नहीं है गौतम ! आहारोपचित पुगल, व शरीरोपचित पुद्गल. पुद्गल को प्राप्त कर जीव व अजीव को गति में परि परंत अलोक में जीव नहीं है. वैसे ही पुद्गलों भी नहीं हैं जिस से महद्धिक यावत् महासुखवाला देव लोकान्त में रहने पर अलोक में हस्तादिकका संकुचन नहीं कर सकता है. अहो भगवन् ! आपके बचन सत्य। 488+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4000 सोलहवा शतक का आठवा उद्देशा धावा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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