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________________ २२४१ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 428 के महालएणं भंते ! लोए पण्णत्ते ? गोयमा ! महति महालए जहा बारसम सए तहेव जाव असंखेजाओ जोअण कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं ॥ १ लोगस्सणं भंते ! पुरच्छिमिल्ले चरमंते किं जीवा जीवदेसा जीवप्पदेसा, अजीवा अजीवदेसा अजीवप्प देसा ? गोयमा ! णो जीना जीवदेसा, जीवप्पदेसावि, अजीवावि अजीवदेसावि, अजीवप्पदेसावि ॥ जे जीवदेसा ते णियमं एगिदियदेसा अहवा एगिदिय देसाय, वेइंदियस्प्त देसे एवं जहा दसमसए, अग्गेयीदिसा तहेव, णवरं देसेसु अणिदियाणं आठवे उद्देशे में उपयोग का कहा. वह लोक में होवे इस से लोक का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! लोक कितना वडा कहा ? अहो गौतम ! लोक बहुत वडा कहा है. इस का विवेचन बारहवे शतक में किया है. वैमा यहां पर भी कहना यावत् असंख्यात क्रोडाक्रोड योजन की परिधि है ॥१॥ अहो भगवन् ! लोक के पूर्व के चरमान्त में क्या जीव, जीव देश, जीव प्रदेश, अजीव, अजीव देश, व अजीव प्रदेश है ? अहो गौतम ! जीव नहीं है परंतु जीव देश व जीव प्रदेश है. अजीव, अजीव देश अजीव है. जो जीव देश हैं वे निश्चय ही एकेन्द्रिय जीव देश अथवा एकेन्द्रिय का एक जीव देश बेइन्द्रिय का बहुत जीव देश यों जैसे दशवे शतक में कहा वैसे ही यहां कहना. अग्नेयी दिशा का भी वैसे ही सोलहवा शतक का आठवा उदशा 48 भावाथे .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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