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शब्दाथ 14
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श्री अमोलक ऋषिजी +
क० कितने भं० भगवन् उ० उपयोग ५० कहे गो• गौतम दु० दो प्रकार के उ० उपयोग ५० कहे हुवे ज जैसे उ०उपयोगपद प०पन्नवणा में ततैसे णिसव भा०कहना पा० सम्यक्त्व व०कहना ॥१६॥
कइविहेणं भंते ! उवओगे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे उवओगे पण्णत्ते एवं जहा उवओगपदे पण्णवणाए तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं ॥ पासवणापदं वण्णेत्तव्यं, सेवं भंतेत्ति सोलसमस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १६ ॥ ७ ॥
.*काशक राजावहदुर लाला मुखदवसहायनी ज्वालाप्रसादनी *
छठे उद्देशे के अंत में सुगंधि द्रव्यों का कथन किया. वह उपयोग से जाना जाता है इमलिये शतक में उपयोग का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! उपयोग के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! उपयोग के दो भेद कहे हैं. इम का विशेष खुलासा पनवणा पद के २१ वे पद में है. उपयोग में आठहै ज्ञान व चार दर्शन हैं. और तीसवें पामवणा पद में पासवणा के दो भेद कहे हैं. सागार पासवणा और अनगार पासवणा. जिस में सागारपासवणा के ६ भेद किये हैं. १ श्रुत ज्ञान, २ अवधि ज्ञान, ३ मनः पर्यव ज्ञान, ४ केवल ज्ञान, ५ श्रुत अज्ञान व ६ विभंग ज्ञान और अनगार पामवणा के तीन भेद कहे हैं.
सुदर्शन २ अवधि दर्शन ब ३ केवल दर्शन, पासवणा बोधपरिणाम विशेष सम्यक्त्व को कहते हैं. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह सोलहवा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुआ ॥ १६ ॥७॥
भावा