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शब्दार्थ मारने से ता. तव मे उस पु० पुरुष को का० कायिकी अ० अधिकरण की प्रपिकी पर
परितापनिकी च. चार कि० क्रिया पु० स्पर्शी जे. जो भ० भव्य उ० बनाने से वं० बंधन करने में मा० मारने से ता. वहांलग मे० उम पु० पुरुष को का० कायिकी जा. यावतू पा० प्राणातिपातिकी पं.
पांच कि० क्रिया पु० स्पर्शी से. यह ते. उमलिये जा. यावत् पं० पांच कि क्रिया ॥४॥ ८० पुरुष का कच्छ जा. यावत व. वन वि० विषम त० तृण ऊ० ऊंचा करके अ. अनिकाय
से पुरिसे काइयाए अहिगरणयाए, पाओसियाए, परियावाणियाए, चउहिं किरियाहिं ३ पट्टे । जे भविए उडवणयाएवि बंधणथाएवि, मारणयाएवि तावंचणसे पुरिसे काइ. है याए जाव पाणाइवाय किरियाए पंचहिं किरियाहिं पट्टे । से तेण?णं जाव पंचकिरिए
॥ ४ ॥ पुरिसेणं भंते ! कच्छंसिवा, जाव वणाविदुग्गसिवा, तणाई ऊसविय २ अजितने काल पर्यंत कूटपाश बनाने का व मृग बांधने का भाव है परंतु मारने का भाव नहीं है उस को उतने कालतक चार क्रिया लगती हैं. उक्त तीनों में उस मृग को परिताप दुःख दिया सो परितापनिकी क्रिया वढी. जिस कोई जितने कालतक कूटपाश बनाने का, बांधने का व मारने का भाव है उस को उतने कालतक पांच क्रिया ओं लगती हैं. कायिकी, अधिकरणकी, प्रवेषिकी, परितापनिकी व प्राणातिपातिकी. इसी कारन से अहो गौतम ! उक्त पुरुष को क्वचित् तीन, क्वचित् चार व क्वचित् पांच क्रियाओं लगती हैं ॥४॥
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती )
पहिला शतकका आठवा उद्देशा 9
भावार्थ
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