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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
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अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
भगवन् ए० ऐसा बु० कहा जाता है मि० कदाचित् ति० तीनक्रिया सि० कदाचित् च० चारक्रिया पं० पांचक्रिया गो० गौतम जे जो भ० भव्य उ० बनाने से णो० नहीं बं० बंधन करने से जो नहीं मा० मारने से ता० तब से उस पु० पुरुष को का० कायिकी अ० अधिकरणी की पा० प्रद्वेषिकी ति० तीन कि० क्रिया प० स्पर्थी जे० जो भ० भव्य उ० बनाने से बं० बंधन करने से नो० नहीं म० सिय चउकिरिए, सियपंचाकरिए । से केणटुणं भंते ? एवं वुच्चइ सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए, सिय पंच किरिए ? गोयमा ! जे भविए उडवणयाए णो बंधणयाए, मारण्याए, तावं चणं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए, पाउसियाए, तिहिं रियाहिं पुट्ठे । जे भविए उडवणयाएवि बंधणयाएवि,
पोमारणयाए तावचणं
कोई पुरुष मृग को मारने के लिये कूटपाश करे; तब अहो भगवन् ! उस मृगपाश करनेवाले पुरुष को कितनी क्रिया लगती हैं ? अहां गौतम ! उस मृगपाश बनानेवाले को तीन, चार व पांच क्रिया लगती हैं. अहो भगवन ! किस कारन से तीन चार व पांच क्रिया उस पुरुष को लगती हैं ? अहो गौतम ! जिस को जितने कालतक कूपाश करने का भाव है परंतु क्त करने का मारने का भाव नहीं है उस पुरुष को उतने कालतक तीन क्रियाओं लगती हैं. १ गमनादि रूप से कायिकी क्रिया, कूटपाशादिक को उत्पन्न करना मो अधिकरण की और मृग में दुष्ट भारताो
विकी जिस पुरुष को
* प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी
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