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________________ २२३८ शब्दार्थ जा. यावत् अं० अंतकरे ॥ २७ ॥ एक म० बडा भ० भवन स० सब र० रत्नमय पा• देखे दु० आरूढ हुवा अ० प्रवेश किया अ. स्वतः को म. माने तेउसी भव में जा. यावत् अं• अंतकरे ॥२८॥ ए. एकई बडा वि० विमान स० सब रत्नपय पा० देखकर दु० आरूढ हुवा अ० स्वतः को म. माने त. तक्षण प०१ मण्णइ, तक्खण मेव तेणेव जाव अंतंकरेइ ॥ २७ ॥ इत्थीवा जाव सुविणंते एगं महं भवणं सव्वरयणामयं पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति अप्पाणं अणुप्पविसमाणे अणुप्पविटामिति अप्पाणं मण्णइ, तेणेव जाव अंतं करेइ ॥ २८॥ इत्थीवा पुरिसेवा सुविणंते एर्ग महं विमाणं सन्वरयणामयं पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति अप्पाणं मण्ण३, तक्खणमेव बुज्झइ, तेणेव जाव अंतं करेइ ॥ २८ ॥ अह भंते ! कोटपुडाणवा जाव केतईपुडाणवा अणुवायांस उभिजन भावार्यतीरा हुवा स्वतः को माने और तत्क्षण जाग्रत होजावे तो उसी भव में मोक्ष जावे ॥ २७ ॥ कोई स्त्री. अथवा पुरुष चारों तरफ रत्नमय भवन देखकर उस पर चढा हुआ माने व प्रवेश किया हुवा स्वतः को माने और उसी क्षण जाग्रत होवे तो उसी भव में अंत करे ॥ २८ ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष रत्नमय लमहा विमान स्वप्न के अंत में देखकर उस पर आरूढ हुवा स्वतः को माने और उसी क्षण जागृत होवे तो उसी भव में सीझे यावत् अंत करे ॥ २८ ॥ अहो भगवन् ! काष्ट नामक मुगंधित पदार्थ का पुडा, यावत् 42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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