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शब्दार्थ देखे भिं• फोडा अ० स्वतः को म० माने त० उसी क्षण बु० जाग्रत होवे दो दूसरे भ० भव में जा० ...|
यावत् अं० अंतकरे ॥ २५ ॥ ए. एक मा बडा प० पद्म सरोवर कु. पुष्पोंवाला पा० देखे ओ०
गाहा हुवा अ० स्वतः को म. माने तं० उसी क्षण जा. यावत् अं० अंत करे ॥ २६॥ ए. एक म० बडा सा० सागर उ० तरंगो जाः यावत् क० कलित पा• देखे ति० तीरा हुवा म. माने ते० उसी
पासमाणे पासइ, भिंदमाणे भिंदइ, भिंदमिति अप्पाणं मण्णइ, तक्खणमेव बुझइ दोच्चेणं भवग्गहणेणं जाव अंतंकरेइ॥२५॥इत्थीवा पुरिसेवा सुविणंते एगं महं पउमसरं कुसुमितं पासमाणे पासइ, उग्गाहेमाणे उग्गाहेइ, ओगाढमिति अप्पाणं मण्णद, तक्खणमेव तेणेव जाव अंतं करेइ ॥ २६ ॥ इत्थीवा जाव सुविणंते एगं महं सागरं
उम्मीवीयी जाव कलियं पासमाणे पासइ, तरमाणे तरइ, तिण्णमिति अप्पाणं সাদা
देरा का घडा, अचित्त सोवीर का घडा, व तेल का घडा देखकर उठाता हुवा स्वतः को माने और तत्क्षण जाग्रत होवे तो दूसरे भव में मोक्ष जावे ॥ २५ ॥ कोई पुरुष अथवा स्त्री स्वप्न के अंत में एक BOबडा पुष्पोंवाला पद्म सरोवर देखकर उस में स्वतःको अवगाहता हुवा माने और तत्क्षण जागृत होजावे तो 17उसी भव में मोक्ष जावे ॥ २६ ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष सहस्र तरंगोंवाला एक बडा समुद्र देखकर उसे |
. पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र -
सोलहना शतक का छठा उद्देशा