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शल
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
उखेले उ. उखेला हुवा मामाने त उसी क्षण जा. यावत् अं० अंत करे ॥१९॥ ए. एक म. बहा। अ• लोहे का समुह तं तांबे का समुह त० तरुये का समुह सी० सीसे का समुह पा० देखते। आरूढ होने हुवे आ. आरूढ होने द. आरूढ हुवा म. माने त. उस क्षण प० जाग्रत होवे दो भ० भव में सि• सीझे जा. यावत् अं० अंत करे ॥ २० ॥ ए. एक म. बडा हि० चांदिका समुह सु०१ मुवर्ण का समुह र० रनों का समुह ३० वजू रत्नों का समुह पा० देखते हुवे पा० देखे दु. आरूढ
मण्णइ, तपखणमेव जाव अंतंकरेइ ॥ १९॥ इत्थीवा पुरिसेवा मुविणते एगे महं अयरासिंवा तंवरासिंवा तउयरासिंवा, सीसगरासिंवा, पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ. दुरूहमिति अप्पाणं मण्णइ तक्खणमेव बुज्झइ दोघेणं भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतकरेइ ॥ २० ॥ इत्थीवा पुरिसेवा सुविणंते एगं महं हिरण्णरासिंवा सुवण्ण
रासिंवा रयणरासिंवा घइररासिंवा पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति सीझे बुझे यावत् अंत करे ॥ १० ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष लोहे का ढग, ताम्बे का ढग, तरुए का ढग, व सीसे का ढग देखकर उस पर चढा हुवा खनः को माने और तत्क्षण जाग्रत होजावे तो दूमरे भव में सी बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे ॥ २० ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में चांदी का ढग, सुधर्ण का ढग, रत्न का दग व वन रत्न का दग देखकर उस पर स्वतः को चदा हुवा पाने और
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- कायक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी चालाप्रसादजी.
भावार्थ