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जब्दार्थ होते दु. आरूढ होवे दु. आरूढ हुवा अ० स्वतः को म० माने त० उसी क्षण बु० जाग्रत होवे तेउसी ।
१० भव में सि. सीझे जा० यावत् अं० अंत करे ॥ २१ ॥ ए. एक म० बडा त० तृण का समुह ज. जैसे Vते. तेज णि निसर्ग जा. यावत् अ० कचरे का समुह पा० देखकर पा० देखे वि. विखेरता हुवा वि. .
विखरे वि. विखेरा हुवा म. माने ता० उसी क्षण बु० जाग्रत होवे ते उस जाल्यावन् अं• अंतकरे ॥२२॥ ए. एक म० बडा स० बाणों का ५० स्तंभ वी० वारण का स्तंभ वं० वाँश के मूल का स्तंभ व. वल्ली
अप्पाणे मण्णइ तक्खणमेव बुज्झइ, तेणेव भवग्गहणेणं सिझइ जाव अंतंकरेइ ॥ २१ ॥ इत्थीवा पुरिसेवा सुविणते एगं महं तणरासिंवा जहा तेयणिसग्गो जाव अवकररासिंवा पासमाणे पासइ, विक्खरमाणे विक्खरइ विक्खण्णमिति अप्पाणं मण्णइ, तक्खणमेव बुज्झइ तेणेव जाव अंतं करेइ !॥ २२ ॥ इत्थीवा पुरिसेवा
सुविणंते एगं महं सरथभंवा धीरणथंभंवा वैसीमूलथंभवा, वल्लीमूलथभंवा, पासमाणे भावार्थ शीघ्र जागृत होजावे तो उसी भव में सीझे बुझे यावत् अंत करे ॥ २१॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष तृणराशि
यावत् अबकर राशि को देखकर उसे विखेरता हुदा माने और शीघ्र जागृत होजावे तो उसी भव में मोक्ष + जावे ॥ २२ ॥ कोई स्त्री अथवा पुरुष एक पडा बाणों का स्तंभ, वीरण (कडवे) का स्तंभ, वंशी मूल काई ।
पंचमांगविवाह षण्णति (भगवती ) सूत्र
8948 सोलहवा शतक का छठा उद्देशा..