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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 48 पंचांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र क स० देव सहित म मनुष्य अ० असुर लो० लोक में प० होत्रे इ० ऐसा स० श्रमण में भगवंत म० महावीर जं० जो स० श्रमण भ० भगत म० महावीर मं० मेरु पर्वत मे० मेरुकी चूलिका जा० यावत् ५० जाग्रत हुवे नं ० इन से स० श्रवण भ० भगवंत म० महावीर स० देव सहित म० मनुष्य अ० अर की प० परिषदा की म० मध्य में के० केलि ध आ कहा जा ० यावत् उ० उपदेशा || १८ || | भगरओ महावीरस्स ओराला वित्तिवण्णसद्दे सिलोया संदेव मणुयामुरेलोगे परिभवति इति खलु समणे भगवं महावीर इतिखलु समणे भगवं महावीर जंणं समणे भगवं महावीर मंदरपव्वय मंदरचूलियाए जात्र पडिबुद्धे, तंणं समणे भगवं महावीरे सदेव मासुरा परिसाए मज्झगए केवलीधम्मं आघवं जात्र उवदंसेइ ॥ १५ ॥ ( अनुहार केवल ज्ञान केवल दर्शन उत्पन्न हुआ. हरे रंग के बैडूर्व रत्न समान अपने शरीर के आंतरडे मे { मानुष्योत्तर पर्वत को लपेटा हुवा देखा जिस से श्रमण भगवंत महावीर की उदार कीर्ति वर्ण व लोक देखें, मनुष्य व असुरलोक में चढा कि श्रमण भगवंत महावीर, श्रवण भगवंत महावीर, जो श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने स्वतः को मरुर्वन को चूलेका हासन पर बैठे हुए देखा जिसे श्रमण भगवंत [महावीर स्वामीने देव, मनुष्य व असुर की परिषदा में केवलिधर्म की प्ररूपणा की यावत् उपदेश दिया। 4- मोलहवा शतक का छठा उद्देशा + २२३१
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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