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शब्दार्थ
अनवाटक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
अ. अंनत जा. यावत् संसार कतार वि. तीरे जं. जिस से स० श्रमण भ• भगवंत म० महावीर ९०१ : एम. वडा दि० सूर्य जा० यारत् प० नया हुवे तं• इस मे म० श्रमग भ. भगवंत म. महावीर को अ. अन अ: अनुत्तर जा. यारत के काल व. श्रेष्ट ण ज्ञान . दर्शा स० उत्पन्न हुवा जं. जो स० श्रमण मे जा: जाबत् वी महावीर में ए. एक मवडा ह० हरे वे० बैडूर्थ जा. यावत् प० जाग्रत हुरे तं० इ स १० अपण भः भगत प० पहावीर को औ? उहार कि. कीर्ति व० वर्ण स० शब्द सि०
पडिबुडे, तंणं समणेण भगवया महावीरेणं अणदीए अणवदग्गे जाव संसार कनारे तिण्णे जणं समणे भगवं महावीर एगं महं दिणयरं जाव पडिबुद्धे, तंणं
समणस्स भगवओ महावीरस्त अणंत अणुत्तरे जाव कंबलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ___ जंणं समणेणं जाव वारेणं एगं महं हरिय वरुलिय जाव पडिबुडे, तणं समगस्स साप्न में देखा था जिसमे श्रण भान महावीरने पाध, साधीः श्र का विकासाचधि मंघ की स्थापना की. श्रषण भात महावीर जो मुगंचित पुष्पाला बदामरोवर सा में देखा था जिसने श्रमण भगवंत महावीर सामीन भवनवासी, वणव्यर, ज्योतिपय मालिक. ये चारदेवों रूप कप में श्रमण भगवंत महावीर सामी हजारो तरंगो वाला समुद्रतीर जिम मे महावीर मामी आदि अनंत संसार तार के उत्तीर्ण हो.सन में श्रमण भगवंत पहावीर स्वामीने एक बडा तेजस्वी देदीप्यमान सूर्यदखा था जित से श्रण भगवंत महावीरको अनंत
.प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ