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शब्दार्थ |
सुत्र
भावार्थ
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
समुदाय जा० यावत् १० जाग्रत हुवे तं० इस से चा० चार प्रकार के स० श्रमण संघ १० प्ररूपा स० साधु सं०साध्वी सा० श्रावक सा० श्राविकाओं ए० एक म० वडा १० पद्म सरोवर जा० यावत् प० जाग्रत हुवे त० तत्र स० श्रमण जा० यावत् म महावीरने च० चार प्रकार के दे० देव प० कहे भ० भवनवासी ( वा० वाणव्यंतर जो० ज्योतिषी देव वैमानिक नं० जो स० भ्रमण भ० भगवंत म० महावीर ए० एक म वडा सा० सागर जा० यावत् प० जाग्रत हुवे तं० इन से स० भ्रमण भ० भगवंत म० महारीर अ० अनादि । पडिबुद्धे तंणं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउवण्णाइं समणसंघे पण्णत्ते तजहा समणाओ समणीओ सावयाओ सावियाओ जंणं समणे भगवं महावीरे एगमहं पउमसरं जाव पडिबुद्धे, तणं समजाव महावीरे चउविहे देवे पण्णवे तंजहा भवणवासी वाणमंतर जोइसिए बेमागिए जंणं समणे भगवं महावीरे एवं महं सागरं जाव महावीर स्वामी शुक्ल ध्यान में विचरने लगे, जो स्वप्न में एक चित्र विचित्र पांख वाला बडा पुरुषको किल को देखकर जाग्रत हुवे थे जिस से श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने विचित्र प्रकार के स्वसमय, पर ( समयरूप द्वादश, गणिपिंडग कहा, प्ररूपा, बतलाया, निर्देश किया, व उपदेश दिया. जिन के नाम आचाराङ्ग सूत्रकृताङ्ग यावत् दृष्टिवाद, स्वप्न में महावीर स्वामीने रत्नमय एक माला का युगल देखाथा जिस से श्रमण भगत दो प्रकारका धर्म कहा आगार धर्म व अनगार धर्म श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने जोश्वत गोवर्ग
43- सोलहवा शतक का छठा उद्देशा
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