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4.१ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
झा ध्यानोपगत वि० विचरें जं जो चि. चित्र वि०विचित्र जा. यावत् ज. जाग्रत हुए से स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीरने चिलचित्र विचित्र स० स्वसमय प० परसमय वाला द० बारह ग. गणिपिंड आ० कहे १० प्ररूपे दं० बतलाये नि० निर्देशे उ० उपदेशे तं० तद्यथा 3 आचार सू० मूत्रकृत जा. यावत् दि० दृष्टिवाद जं. जो ए० एक म० बडा दा० माला दु० युगल जा० यावत् प० जाग्रत हुवे तं० इस से स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीरने दु० दो प्रकार के ध० धर्म ५०१ प्ररूपे तं० तद्यथा आ० आगार धर्म अ० अनगार धर्म जं. जो ए० एक म० बडा गो. गायों का 40 __ भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्त जाव पडिबुद्धे, तंणं समणे भगवं महावीरे विचित्तं ससमयपरसमय दुवालसगं गणिपिडगं आघवेति पण्णवेति परूवेइ दंसेइ निदंसेइ
उबदसेइ, तंजहा आयारं सूयगडं जाव दिदिवायं जणं समणे भगवं महावीरे एगं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे तंणं समणे भगवं महावीरे दुविहे धम्मे
पण्णवेइ,तंजहा-आगार धम्मं वा अणगार धम्भवा जंणं समणे भगवं महावीरे एगं महं स्वामी एक बडा विकराल रूपवाला तालपिशाच को स्वप्न में देखकर जाग्रत हुवे थे उस का फल यह हुवाई कि श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ताल पिशाचरूप मोहनीय कर्म का मूल मे क्षय किया, श्रमण भगवंत महावीर स्वामी स्वप्न में जो श्वेत पांखोवाला पुरुष कोकिल को देखकर जाग्रत हुवे थे इस से श्रमण भगवंत
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ