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शब्दार्थ.
4 अनुवादक- बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ
र० रत्नमय सु० स्वप्न में पा० देखकर प जाग्रत हुवे ए०एक म० बडा मे० श्वेत गो० गोवर्ग ए० एक म बडा प० पद्मशेरस चारों तरफ कु पुत्रों सन ए० एक म० बडा मा० समुद्र उ० तरंगों [स० सहस्रों में क० कलित भुः भुजा से ति० तीरा हुवा ए० एक म० बडा दि० सूर्य ते ० तेज मे ज० जाज्वल्यमान ए० एक म० वडा हहरा ० वैडूर्य के वर्ण ममान णि- अपने अं अंतरंड से सेमा० मानुषोत्तर प पर्वत का स० चारों तरफ आ० लपेटा हुवा पर विशेष लपेटा हुआ ए० एक म० बडा मं० पडिबुद्धे, एगं च णं महं संयं गोत्रग्गं सुविणे पासित्ताणं डबुडे, एगं चणं महं पउमसरं सव्वओं समंता कसुमियं सुवर्ण पासित्ताणं पडिबुद्ध, एवं चणं महं सागरं उम्मीत्रीयी सहस्त्रलियं याहिं तिष्णं सुत्रिणे पातित्ताणं पडिबुद्धे, एगंचणं महं दिणयरं तेयसा जलतं सुविणे पा०, एगंचणं महं हरिवेरूलिय वण्णाभण भियगेणं अतण माणुसुत्तरं पव्त्रयं सव्वओ समता आढय परिवेढिय सुविण पासित्ताणं पडिबुडे, एग चणं पप्पावाचा एक वडा १द्मसरोवर में देखकर जाग्रत हुये ७ छंटी घडी महस्र तरंगवाला एक बडा सागर का भजा मे नीरा हुवा स्वप्न में देखकर जग्र हुबट एक बडा तेजस्वी ज जलयान सूर्य की में देखकर जागृत हुव ९ नील वर्णवाले वैडूर्य रत्न जैसे अपने शरीर में रहे
आंतर
मनुष्य क्षेत्र की मर्यादा करनेवाला मानुषोत्तर पर्वत को दोनों तरफ वेष्टित व विशेष वेष्टित किया
* प्रकाशक- राजावहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्यालामनादि
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