________________
२२१४
सत्र .. हिज्जमाणणं सीसगणसंपरिखुडे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम जाव जेणेव सहसं
.. ववणे उजाणे जाव विहरइ ॥ १४ ॥ परिसा जिग्गया जाव पज्जुबासइ ॥ १५ ॥ 1 तएणं से गंगदत्ते गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट्ठ तुट्ट जाव कयवलि
सरीरे साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता पादविहारचारेणं हत्थिणा 'उरे णयरं मझं मझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छइत्ताजेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव मुणि
सुब्बए अरहा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता, मुणिसुव्वयं अरहं तिक्खुत्तो आया.
हिणं पयाहिणं जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ॥ १६ ॥ तएणं मुणिसुब्बए भावार्थ पूर्वानुपूर्षि चलते ग्रामानुग्राम विचरते सहस्रवन उद्यान में यावत् विचरने लगे ॥ १४ ॥. परिषदा वंदने को
नीकली यावत् पर्युपासना करने लगी ॥ १५ ॥ जब गंगदत्त गाथापति ने यह कथा सुनी तब वह हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुवा, स्नान किया, कोग किये, तीलमसादिक किय यावत् अपने गृह से नीकलकर पाँवसे चलते हुने हस्तिनापुर नगर की बीच में मेनीकलते हुरे महसदन उद्यान में मुनि सुत्रन अश्रित की पास गया. मुनि सुत्रत अरिहंत को हस्त जोडकर तीनवार वंदना नमस्कार कर यावत् नीन योगों की शुद्धि से पर्युपासना करने लगा ॥ १६ ॥ मुनि सवत स्वामीने गंगदत्त गाथापति को उस महती परिषदा. में धर्मो-*
* अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री. अमोलक ऋषीजी
wnmitrammarriranmmmmmmmmmmmmmm
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
--
-
-
.