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॥११॥ गंगदत्तेणं भंते ! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुत्ती किंणा लडा जाव जणं गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्या देविड्डी जाव अभिसमण्णागया ? गोयमादि ! समणे • भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयामी-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालणं तेणं सम
२२१३ एणं इहेव जंबूहीवे दीवे भारहेवासे हत्थिणापुरे गामं जयरे होत्था वण्णओ, सहसं ववण्णे उजाणे वण्णओ, ॥ १२ ॥ तत्थणं हथिणापुरे णयरे गंगदत्ते णामं गाहावई परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभूए ॥ १३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुब्बए अरहा
आदिगरे जाव सम्वष्णु सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव पकटिजमाणेणं, पकभावार्थवंत यावत् महा ऐश्वर्यवंत है ॥ ११॥ अहो भगवन् ! उस गंगदत्त देव को ऐमी ऋद्धि कैसे मीली
कैसे प्राप्त हुई ? श्रमण भगवंत महावीर स्वामी भगवान् गौतम को ऐसा बोले कि अहो गौतम ! उस
ल उस समय में इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नगर था. वह वर्णन योग्य था. उस
ईशान कौन में सहस्र वन उद्यान था ॥ १२ ॥ उस हस्तिनापुर नगर में गंगदत्त गाथापति रहना था. वह 13ऋदिवंत यावत् अपराभून या ॥ १३ ॥ उस काल उम ममय में मुनि सुत्रत आरिहंत आदि के करनेवाले 3
यावर सर्व सदी आकाशगतचक से यावत् धर्म को प्रगट करते २ शिष्य समुदाय से परवरे हुवे ।
(भगवती ) सूत्र पचरंगविवाह पनि
g+4 सोलहवा शतक का पांचवा उद्देशा 848
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