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________________ . २२१२ समणस्त भगवओ महावीररस अंतिए धम्म सोचा णिसम्म हट्ट तुट्टे उट्ठाए, उट्टेइ, उर्दुइत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदइत्ता णमंसइत्ता एवं क्यासी-अहंणं भंते ! गंगदत्ते देवे किं भवसिडिए, अभवसिद्धिए, एवं जहा सरियाभो जाव बत्ती. सविहं उपदंसेइ २ त्ता जाव तामेव दिसिं पडिगए ॥ १० ॥ भनत्ति भगवं गोयमे P... समणं भगवं जाव एवं वयासी-गगदत्तस्स णं भते ! देवस्स सा दिव्या दबिड्डी दिव्या क देवजुत्ती जाब अणुप्पविट्ठा ? गोयमा ! सरीरं गया सरीरं अणुप्पविट्ठा कूडागारसाला दिटुंतो जाव सरीरं अणुप्पविट्ठा। अहोणं भंते ! गंगदत्ते देवे महिाड्डए जाव महेसक्खे श्रमण भगवंत महानीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर नम्न आसन से यावत् पर्युपामना करने लगा ॥९॥ फार गंगदत्त देव श्रमण भगवंत की पास से धर्म मुनकर हट तुष्ट हुवा और अपने स्थान से उठकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार करके उसने प्रश्न पूछा कि अहो भगवन् ! क्या में देव भवसिद्धिक हूं या अभवसिद्धिक हूं ? ऐसे ही जैसे सूर्याभका यावत् बत्तीस प्रकार के नाटक बतलाकर जहां से आया था वहाँ पीछा गया ॥ १० ॥ श्री गौतम स्वामीने आपण भगवन महावीर स्वामी को प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दीव्य देव ऋद्ध देव घुति वगैरह कहां गइ कहाँ प्रविष्ट । हुइ ? अहो गौतम! कूदाकार जैसे शरीर में गइ शरीर में ही प्रविष्ट हुइ. अहो भगवन्! गंगदच देव महाऋदि. बालब्रह्मचारी मान श्री अमोलक ऋषिजी अनुवादक प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादगी . भावाथे 4.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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