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शब्दार्थ
4. अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी gr
* सहते अ.. आठ उ० संक्षिप्त प०. प्रश्न वा० उत्तर पु० पूछकर सं० संभ्रांत ५० पीछा गया।
॥५॥ जा० जितने में स० श्रमण भ० भगवंत ए. यह अ० वात ५० कहते हैं ता० उतने में से वह देदेव तं० उस दे० विभाग में हः शीघ्र आ० आया ॥ ६ ॥ शेष सरल ॥
वागरणाई पुच्छइ, पुच्छइत्ता संभंतिय जाव पडिगए ॥५॥ जावं चणं समणे भगवं 'महावीरे, भगवओ गोयमस्स एयमढे परिकहेइ, तावंचणं से देवे तं देसं हत्वमागए
॥ ६ ॥ तएणं से देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ वंदइत्ता प्रम. सइत्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते! महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे एगे मायी उव
वण्णए देवे ममं एवं वयासी-परिणममाणा पोग्गला णोपरिणया अपरिणया, परिणमंती नही सहन करने से संभ्रान्तीचप्स से संक्षिप्त में आठ प्रश्नों पुछकर अपने स्थान पीछा चला गया. ॥ ५ ॥ श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ऐमा कहते थे उतने में ही वह देवभी वहां ही आगया अब उस देवने श्री श्रमण भगवंत महावीर को तीन बार वंदना नमस्कार कर ऐसा प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! सातवे महा शुक्र देवलोक के महासामानिक विमान में एक मायीमिथ्या दृष्टि देवने मुझे रोसा कहा कि परिणमते हवे पदल परिणत नहीं हैं परंत अपरिणत हैं और जो पदल परिणमते हैं
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
भावार्थ
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