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शब्दार्थ
488 पंचांग विवाह पस्नत्ति (भगवती ) मूत्र 4884
सं० इस से से० श्रेय स० श्रमण भ. भगवंत म. महावीर को 4. वंदना करना जा यावत् १०पर्युपासना करना इ० यह एक ऐसा वा० उत्तर पुः पुछकर ति एसा करके ए०ऐने सं०विचारकर च०चार सा०सा-2 मानिक सा० सहल पा० परिवार ज• जैसे सू० सूर्याभ णि• निघोषणावाला र० शब्द से प० नीकला ग. जाने को॥४॥ त० तब से वह स० शक्र दे० देवेन्द्र दे० देवराजा त० उस दे. देव को तं उस दि० दीव्य दे० देवदि दि० दीव्य दे० देवद्युति दे. देवानुभाव दि० दीव्य ते. तेजो लक्ष्या अ० नहीं
पुच्छित्तएत्ति कटु, एवं संपेहेइ २ त्ता चउहिं सामाणियसाहस्साहि परियारो जहा सूरियाभस्स जाव णिग्घोसणादितरवेणं जेणेव जयुहीवे दीवे भारहेवासे : जेणेव उल्लुया तीरे णयरे जेणेव एगजंबुए चेइए जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारे.. स्थगमणाए ॥ ४ ॥ तएणं से सक्के देविंदे देवराया तस्स देवस्स तं दिन्वं देविड.. दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं दिन्च तेयलेस्सं असहमाणे अट्ठ उक्खित्तपसिण . करना यावत् पर्युपासना कर के ऐसे प्रश्नों पुछना मुझं श्रेय है. ऐसा विचार कर चार हजार सामानिक देव के परिवार सहित सूर्याभदेव मान यावत् निघोषणादि शन्द कर के जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में उल्लुका तीर नगर में एक जम्बू उद्यान में मेरी पास आने के लिये नीकला है. ॥ ४ ॥ अब यह शक देवेन्द्र देवराजा उस देवता की.दस्य देवदि, दीव्य देयुति, पीय कानुभाव पाय जापान
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सोलहवा शतेक का पांचवा उदेना कम