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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
65 अनुवादक वालह्मचारी मनि श्री अशोक ऋषिजी
ईमे० वह के० कैसे जा० यावत् दे० देवता का आ० आयुष्य कि० करके दे देवता में उ० उत्पन्न होने गो- गौतम बा० श्रावक त० तथारूप स० श्रमण मा० माहण की अं० पास ए० एक आ० आर्य ध० धर्म का सु० सुवचन सो० सुनकर नि० अवधारकर दे० देशसे उविरमे दे० देशसे नो० नहीं उविरमे (दे० देश प० प्रत्याख्यान करे दे० देश नो० नहीं प० प्रत्याख्यान करे ते० इस लिये दे० देश विरति से दे० देश प्रत्याख्यान से नो० नहीं ने० नारकी का आ० आयुष्य प० बांधे जा० यावत् दे० देवता का आ० अयष्य कि० करके देव देवता में उ० उत्पन्न होवे || ३ || पु० पुरुष मं० भगवन् क० कच्छ द० पंडणं मणुस्से तहारूवरस समणस्सवा, माहणरसवा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुबयणं सोच्चा निसम्म देसं उवरमइ, देसं णो उवरमइ; देतं पच्चक्खाइ, देसं णो पच्चक्रखाइ से तेण देसोवरमइ, देसपच्चक्खाणेणं णो णेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवे उपवज्जइ । से णट्टेणं जाव देवेसु उववज्जइ ॥ ३ ॥ पुरिसेणं भंते ! कच्छंसिबांधे नहीं परंतु देवता का आयुष्य बांधकर देवता में उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! किस कारन से वाल पंडित मनुष्य देवता का आयुष्य बांधकर देवता में उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! बाल पंडित मनुष्य तथा रूप अन माह की पालने एकान्त आर्यधर्म श्रवणकर अवधारकर देश से निवर्ते, देश से निवर्ते नहीं, देश मे प्रत्याख्यान करे, देश से प्रत्याख्यान करे नहीं; इस तरह देश से निवर्तने से व प्रत्याख्यान करने से
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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