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शब्दार्थ
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पण्णत्ति (भगवसी) मूत्र
आयुष्य कि० करके देदेवलोक में उ० उत्पन्न होवे गो: गौतम ए. एकान्त पं. पंडित म. मनुष्य को के. मात्र दो० दोगनि प० कही है अं० अंतक्रिया क. कल्पोत्पन्न से वह ते. इस लिये जा. यावत् दे देवता का आ० आयुष्य कि० करके दे० देवलोक में उ० उत्पन्न होवे ॥२॥ बाबाल पंडित भं० भगवन् म. मनुष्य किं० क्या ने नारकी का आ. आयुष्य प. बांधे जा. यावत दे देवता का आ. आयुष्य कि० करके दे० देवता में उ० उत्पन्न होवे गो० गौतम णो नहीं ने नारकी का आ०, आयुष्य प० बांधे जा० यावत् दे० देवता का आ० आयुष्य कि० करके दे. देवता में उ० उत्पन्न किरिया चेव, कप्पोक्वत्तिया चेव; से तेणटेणं गोयमा ! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववजइ ॥ २ ॥ बाल पंडिएणं भंते ! मणसे किं नेरइयाउयं पकरेइ, जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ ? गोयमा ! णो णेग्इयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा
देवेसु उववज्जइ । सेकेण?णं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ ? गोयमा ! बालवैमानिक दवलोकमें उत्पन्न होवे ऐसी दागति कही. इसलिये अहो गौतम ! एकान्त पंडित मनुष्य देवगति के आयुष्य का बंधकर देवगति में उत्पन्न होता है. ॥ २॥ अहो भगवन् ! बाल पंडित (श्रावक ) मनु क्या नारकी का आयुष्य यावत् देवता का आयुष्य बांधकर देवता में उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! वाल पंडित मनुष्य नारकी का आयुष्य बांधे नहीं, तिर्यंच का आयुष्य बांधे नहीं, मनुष्य का आयुष्य
पहिला शतक का आठया उद्देशा
भावार्थ
पंचमाङ्ग