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शब्दार्थ
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• अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सिः कदाचित प. बांधे मि. कदाचित् नो० नहीं १० बांधे ज० यदि प. वांधे नो नहीं णः नारकी का आ- आयध्य एक बानो नहीं तितियच का आ. आयुष्य प. बांये नो० नहीं म. मनुष्य का आ. आयच्य पवनदे० देवता का आ. आयप्य प. बांधे जो नहीं ने नारकी का आ० आयष्य कि० करके ने नरक में उ० उत्पना होवे जो नहीं लि. तिथंच नोनहीं म मनुष्य दे० देव का आ. आयप्य कि करके देदेवता उ. उत्पन्न होरे मे. वर के कैसे जा. यावत् द. देवका
यंसिय पकरेइसियणोपकरेइ। जइ पकरइ णोणेरइया उयं पकग्इ णा तिरियाउयं पकरेइ णो मणयाउयं पकरइदेवाउयं पकरेइणो नेरइयाउयं किन्चाइएम उववजइ, णोतिरि नोमण देवाउयं किच्चा देवेस उवजय । संकपाटेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववजइ ?
गोयमः ! एगंत पांडयम्सणं मणस्सस्स केवलमेव दोगईओ पण्णायंति तंजहा-अंतपंडित मनष्य किसी ममय आयय का बंध करता है और किसी ममय आयप्य का धंध नहीं करता है. जव आयुष्य का पंधकरता है, नन नरक निर्यच व मनप्य का आयुप्य नहीं बांधता है और वहां नहीं उत्पन्न होता हे परंतु मात्र देवगति का आयुप्य बांधता है और यहां उत्पन्न होता है. अहो भगवन ! किस कारन मे एकान्न पंडित नरक निर्थ वन मनुष्य का आयज्य नहीं बांधता है यावत् देवता का आयुष्य बांधकर देवता में उत्पन्न होता है ? अहो गीतम एकान पंडित पाय को केवल दो गति कही. १ मव कमों का अंत करना मो अंतक्रिया और समस्त कर्म भय नहीं बोने मे व पुण्य की वृद्धि होने मे
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ