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________________ शब्दाथ awwammawimmator ३१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी तैसे अ.लोहमय जा. यावत पर्यवसान भ० होते हैं ते० इसलिये गो. गौतम ए० एसा कहा जा जा. जितने में अ० अन्न में ग्लान स० श्रमण णि निग्रंथ क० कर्म णि निर्जरते हैं . वैसे को कोडाकोडी में णो नहीं ख० क्षय करते हैं।१६॥४॥ . . ते. उस का. काल ते. उस स० समय में उ० उल्लका तीर ण नगर हो० था . बर्णन युक्त से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जावइयं अण्णगिलायए समणे णिग्गंथे कम्म णिज्जरेइ तंचेव जाव कोडाकोडीएवा णो खवयंति ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ! जाव , है विहरइ ॥ सोलसमस्स चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १६ ॥ ४ ॥ . तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लयातीरे णामं णयरे होत्था अण्णओ ॥ एगजंबुए वाले श्रमण निग्रंथ जितने कर्मों की निर्जरा करे उतने कर्मों की निर्जरा नरक में रहे हुवे नारकी वर्ष में, प्रत्येक वर्ष में या मो वर्ष में नहीं कर सकते हैं यावत् चोले करनेवाले श्रमण निग्रंथ जितने कर्मों की निर्जरा करते हैं उतने कर्मों की निर्जरा नरक में रहे हुवे नारकी क्रोड वर्ष में, प्रत्येक क्रोड वर्ष में वोडाक्रोड वर्ष में भी नहीं कर सकते हैं. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य ह सोलहवा शतक का चौथा उद्देशा पूर्ण हवा ॥ १६ ॥ ४॥ चतुर्थ उद्देशे में निर्जरा का कथन किया. अब आगे देवता की आगमनादि शक्ति स्वरूप कहते *पकाचक-राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. भावार्थ wwwwww
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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