________________
शब्दार्थ + करे स० घडे २ द० टुकडे अ० करे ऐ० ऐसे गो० गौतम स० श्रमण णि निर्गन्ध को अ० यथा बादर, 1 . कर्म सि० सिथिल क० किये हुये णिः सत्ता रहित जा. यावत् खि० शीघू १० नष्ट भ० होते हैं।
जा. जब ता० तब जा. यावत् प० पर्यवसान भ० होते हैं ॥८॥से अथ ज. जैसे के कोई पु० पुरुष सु. शुष्क त तृणहस्त जा. यावत् ते० अनि ५० डाले ए. ऐसे ज. जैसे छ० छठे स० शतक में त०
करेइ, महताई २ दलाई अबदालेइ. एवामेव गोयमा ! समणाणं णिग्गंथाणं अहाबादराई कम्माइं सिढिलीकयाइं णि? जाव खिप्पामेव परिविद्धत्थाई भवंति, जावइयं तावइयं जाव पज्जवसाणा भवंति ॥८॥ से जहा वा केइ पुरिसे सुक्के तणहत्यगं जाव।
तेयंसि पक्खिवेजा, एवं जहा छ?सए तहा अयोकवल्लेवि जाव पज्जवसाणा भवति भावार्थ को धारवाले परशु से काटे उस समय वह बडे २ शब्दों करे, वैसे ही उस को विदारते बहुत परिश्रम नहीं
। है. ऐसे ही अहो गौतम ! श्रमण निग्रंथ के यथावादर कर्मों शिथिलीभूत. यावत् शीघू नष्ट । से होते हैं. और पर्यवसानवाले भी होते हैं ॥८॥ और जैसे कोई पुरुष सुका हुवा घास आग्नि में डाले वगैरह जैसे छठे शतक में कहा वैसे ही यहां कहना यावत् सब कर्मों का पर्यवसान होवे. और भी जैसे 3
तपे हुवे लोहे पर पानी का बिन्दु कोई पुरुष डाले तो वह शीघ्र नष्ट होता है वैसे ही श्रमण निग्रंथ के ... I कयों पर्यवसानवाले होते हैं. अहो गौतम ! इस कारन से ऐसा कहा गया है कि अब में ग्लानि पाने-. ।
पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र +8+
सोलहवा शतक का चौथा