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शब्दार्थ/4 अ० देखा इ० ऋषिको पा० गिराकर अं० मसा छि• छेद सेः अथ णू० शंकादर्शी जे जो छि० छेदे त०
उसको का कितनी कि० क्रियाओं ज. जिसे छि० छेदा णो० नहीं तक उसे कि क्रिया ण. नहीं है। ०७ अ. सिवाय ध० धर्मातराय हं हां गो. गौतम जे० जो छि• छेदावे जा. यावत् ध० धर्मातराय से वैसे ही भं. भगवन् सो० सोलहवा स० शतक का ता तीसरा उ० उद्देशा स. समाप्त ॥ १६॥३॥
तस्सय अंसियाओ लंबइ, तंचव विजे अंदक्खु इसिं पाडेइ पाडेइत्ता अंसियाओ ____ छिंदेजा ॥ सेणूणं भंते ! जे छिंदेजा तस्स कइ किरिया कजइ ? जस्स छिजइ णो
तस्स किरिया कजइ ॥ णण्णत्थगेणं धम्मंतराइएणं ? हंता गोयमा ! जे छिंदइ जाव
धम्मंतराइएणं | सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सोलसमस्स तइओ उद्देसो सम्मत्तो॥१६॥३॥ भावार्थ उसे देखकर ध्यानरत मुनि को जमीनपर गिरादेवे और उस मस्सा के अंश का छदन करे. अब अहो भगवन्!
उस छेदन करने वाला वैद्य को कितनी क्रियाओं लगे? अहो गौतम ! जा छेदता है उस को क्रिया नहीं लगती है, क्योंकी व्यापार रहित मात्र माधु के लिये कर्तव्य करता था. अब जो मुनि ध्यानस्थ थे उन को धर्म करने में जो व्याघात हुइ वह अंतराय क्या लगती है ? हां गौतम ! हरस छेदते धर्मध्यान में जो ध्याघात हुइ वह अंतराय अवश्य लगती है. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह सोलहवा, शतक का तीसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १६॥३॥
पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मंत्र
सोलहवा शतक का तीसरा उद्देशा
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