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________________ शब्दार्थ २११४ संत्र अ० निरंतर जा. यावत् आ. आतापनालेते त० उम को पु० पूर्व के अ० आधा दि. दिन में णो०. नहीं । क. कल्पता है ह. हस्त पा० पांव जा. यावत् उ० जंघा आ० संकुचित करने को प० प्रसारने को ५० पश्चिम के अ० अर्थ दि० दिवस में क. कल्पता है ह० हस्त पा० पांव जा० यावत् उ०. जंघा आ० म संकुचित करने को १० प्रसारने को त. उस को अ० मसा लं० अवलंत्रता है तं० उसे वि. है वंदइणमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-अणगारस्सणं भंते ! भावियप्पणो है छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं जाव आयावेमाणस्स तस्सणं पुरच्छिमेणं अवढं दिवसं णो कप्पइ हत्थंवा पायंत्रा जाव उरुवा आउंटावेत्तएवा पसारत्तएवा, पच्चच्छि मेणं अवड्ढदिवसं कप्पइ हत्थंवा पादंवा जाव उरुवा आउंटावेत्तएवा पसारेत्तएवा, ॥ एकजम्बू उद्यान में यथाप्रतिरूप अवग्रह याचकर पधार. परिषदा वंदन करने को आइ यावत् धर्मोपदेश । सुनकर पीछीगइ. ॥४॥ श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर भगवान गौतम स्वामी पुछने लगे अहो भगवन् ! निरंतर छठ२ की तपस्याकरनेवाले यावत् आतापना लेनेवाले अनगार को दिन । के पूर्वार्ध भाग में कायोत्सर्ग होने से हस्त पांत्र, यावत् उम को संकुचित करने व मारने का नहीं कल्पता है और दिन के पश्चिमा भाग में हस्त, पांव, यावत् उस को पसारने का व संकुचित करने का कल्पता, है. अब कर्मोदय से उन को मसा ( हरत ) का रोग हुवा होवे और वह वैद्य की दृष्टि में आवे, वैद्य २.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायगी ज्वालाममा जीदे * म भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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