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________________ शब्दार्थ गो. गीतम अ० आठ क. कर्म प्रकृतियों प० प्ररूपी तं. तद्यथा णा ज्ञानावरणीय जा. यावत् अं० राय ए. ऐसे जा. यावत् वे वैमानिक सरल ||१॥ सरल ॥२॥त. तब स० श्रमण भ० भगवंत कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ तंजहा-णाणावराणिजं जाव अंतराइयं एवं जाव वेमाणियाणं ॥ १॥ जीवेणं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेदमाणे कइ कम्मपगडीओ वेदेइ ? गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ एवं जहा पण्णवणाए वेयावेउद्देसओ सोचेव णिरवसेसो । भाणियन्वो ॥ वेदाबंधोवि तहेव ॥ बंधावेदोवि तहेव बंधाबंधेवि तहेव भाणियव्वो, जाव वेमाणियाणत्ति ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ! जाव विहरइ ॥ २ ॥ तएणं समणे भावार्थ Pगुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीको वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! कर्मप्रकृतियों कितने प्रकार की कही है ? अहो गौतम ! आठ कर्म प्रकृतियों कही. १ ज्ञानावरणीय १२ दर्शनावरणीय यावत् अंतराय. ऐने ही वैमानिक तक कहना ॥१॥ अहो भगवन् ! जीव ज्ञानावरणीय कर्म वेदता हुवा कितनी कर्म प्रकृतियों वेदे ? अहो गौतम ! आठ कर्म प्रकृतियों वेदे. ऐसे ही जैसे पन्नाणा में वेदका उद्देशा कहा वैसे ही यहां निरवशेष सब कहना. वेद वंध, वंधवेद व बंध बंध यह सब वैसे ही नानना. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जानना. अहो भगवन् : आप के वचन सत्य हैं यों कहकर भगवान् : अनुबादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी: प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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