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श्री अमोलक ऋषिजी +
शब्दार्थ 4 रा. राजगृह जा. यावत् २० ऐसा व० बोले जी जीवों को भं भगवन् ज० जरा सो०.
शोक मो० गौतम जी जीवों को ज• जरा सो० शाक से० अथ के० कैसे भ० भगवन् जा० यावत् सो० शोक भी गो० गौतम जे० जिस से जी० जीव सा० शरीरिक वे० वेदना वे० वेदते हैं ते. उन जी०
रायगिहे जाव एवं क्यासी जीवाणं भंते ! किं जरा सोगे ? गोयमा! जीवाणं जरावि, सोगवि ॥ से केणट्रेणं भंते ! जाव सोगेवि ? गोयमा ! जेणं जीवा सारीर
वेदणं वेदेति तेसिणं जीवाणं जरा, जेणं जीवा माणसं वेदणं वेदेति तेसिणं जीवाणं । सोगे से तेणट्रेणं जाव सोगेवि ॥ एवं णेरइयाणवि ॥ एवं जाव थणियकुमाराणं ॥
पुढवीकाइयाणं भंते ! जरा सोगे ? गोयमा ! पुढवीकाइयाणं जरा णो सोगे ॥ प्रथम उद्देशे में जीवों का कथन किया. जीवों जरा युक्त होने से दूसरे उद्देशे में जरा का कथन करते है हैं. रामगृह नगर में यावत् ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! क्या जीव को जरा है या शोग है ? अहो गौतम ! जीवों को जरा भी है और शोग भी है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है। कि जीवों जरा व शोग दोनों युक्त हैं ? अहो गौतम ! जो जीव शारीरिक वंदना वेदते हैं उन जीवों
को जरा होती है और जो जीवों मानसिक वेदना वेदते हैं उन जीवों को शोग है. इस लिये ऐसा कहा 1 गया है यावत् शोग है. ऐसे ही नारकी, अमुरकुमार यावत् स्थनित कुमार का जानना. अहो मगवन् ! |
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी