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वाब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती ) सूत्र
{ जीवों को ज० जरा जे जी जी० जीव मा० मानसिक वे० वेदना वे० वेदते हैं ते० उन जी० जीवों {को सो० शोक ऐ० ऐसे णे० नारकी को ए० ऐसे थ० स्तनितकुमार कुमार को ॥ १ ॥ ते ० उस समय में [स० शक्र दे० देवराजा व० वज्र पा० हस्त में पु० पुरंदर जा ० यावत् भुं० भोगता हुवा वि० विचरता से केणट्टेणं जाव णो सोगे ? मोयमा ! पुढवीकाइयाणं सारीरं वेदणं वेदेति
णो माणसं वेदणं वेदेति ॥ से तेणट्टेणं जाव णो सोगे ॥ एवं जाव चउरिंदियाणं ॥ सेसं जहा जीवाणं जाव वेमाणियाणं ॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव पज्जुवासइ ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्रपाणी पुरंदरे जाव भुंजमाणे पृथ्वीकायिक जीवों को क्या जरा व शोग है ? अहो गौतम ! जरा है परंतु शोग नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है ? अहो गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों { होने से वे मानसिक वेदना नहीं वेदते हैं परंतु मात्र शारीरिक वेदना वेदते हैं; इसलिये {शोक नहीं है. ऐसे ही अप्काय, तेढकाय, वायुकाय वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेंइन्द्रिय व { जानना शेष तिर्यंच यावत् वैमानिक तक का समुच्चय जीव जैसे कहना, अहो भगवन् ! सत्य हैं यों कहकर यावत् पर्युपासना करने लगे || १ | उस काल उसे समय में शक्र देवेन्द्र देवराना हस्त में बज्र का आयुध सहित यावत् दीव्य भोगोपभोग भोगता हुवा विचरता था. उस समय में विपुल'
को मन नहीं जरा है परंतु चतुरेन्द्रिय का आप के वचन
4 सोलहवा शतक का दूसरा उद्दशा 4
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